चंद्रशेखर आज़ाद का शुरुआती जीवन :
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को भाबरा, मध्य प्रदेश में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी था। इनकी माता का नाम जगरानी देवी था। मूल रूप से आजाद के पूर्वज उन्नाव उत्तरप्रदेश से थे लेकिन बाद में वे मध्यप्रदेश के भवरा नमक स्थान पर आ गए । चंद्रशेखर को बचपन से ही अंग्रेजी हुकूमत से नफरत करते थे और चाहते थे की भारत देश को जल्द से जल्द अंग्रेजी हुकूमत से आज़ादी मिले।
ब्राह्मण परिवार से होने के कारण उनकी माता जगरानी देवी चाहती थी कि चंद्रशेखर काशी(वाराणसी) जाकर संस्कृत की पढाई करे, लेकिन चंद्रशेखर को यह स्वीकार न था।
13 अप्रैल 1919 को जलियावाला बाग हत्याकांड हुआ , जिसने पूरे देश में ब्रिटिश शासन के प्रति भारतीयों में विरोध और नफरत का भाव पैदा किया। चंद्रशेखर उस समय महज 13 वर्ष के थे , जलियावाला बाग हत्याकांड का चंद्रशेखर के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा।
1921 में चंद्रशेखर ने मात्र 15 वर्ष की उम्र में गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन में भाग लिया, इस दौरान उन्हें पहली बार गिरफ्तार किया गया, जब चंद्रशेखर को मजिस्ट्रेट के सामने लाया गया , और मजिस्ट्रेट ने उनसे उनका नाम पूछा तो उनका जवाब था -" मेरा नाम आजाद है"। मजिस्ट्रेट ने चन्द्रशेखर से उनके पिता का नाम पूछा तो उत्तर - "स्वतंत्रता"।जब मजिस्ट्रेट ने आगे उनसे उनका पता पूछा तो चंद्रशेखर ने जवाब दिया -"जेल"।
ऐसे जवाब मजिस्ट्रेट को पसंद नहीं आये और इसके लिए चंद्रशेखर को 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई गई। जब उन पर कोड़े बरसाए गए तो उन्होंने "भारत माता की जय" के नारे लगाये।
इसी घटना के बाद से चंद्रशेखर को आजाद उपनाम मिला और उनका नाम चंद्रशेखर तिवारी से चंद्रशेखर आजाद पड़ गया।
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन :
1922 में गाँधी जी के असहयोग अन्दोलन के भंग करने के बाद चंद्रशेखर आज़ाद ने अलग तरीके से क्रांति करने का निश्चय किया, इसी दौरान आजाद की मुलाकात मन्मथनाथ गुप्त नामक युवा क्रन्तिकारी से हुई ।
और मन्मथनाथ गुप्त के माध्यम से ही आजाद की मुलाकात राम प्रसाद बिस्मिल से हुई, राम प्रसाद बिस्मिल "हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन" के संस्थापक थे, आजाद की युवा प्रतिभा को देखकर राम प्रसाद बिस्मिल काफी प्रभावित हुए और उन्होंने चंद्रशेखर आजाद को भी अपनी संस्था "हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन" में शामिल कर लिया।
"हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन" में आजाद का काम फण्ड जुटाना था , जोकि अधिकतर सरकारी चीज़ों पर कब्ज़ा करके किया जाता था।
काकोरी कांड की घटना :
रामप्रसाद बिस्मिल की योजना के अनुसार 9 अगस्त 1925 को सरकारी खजाना ले जाने वाली सहारनपुर से लखनऊ जाने वाली ट्रेन को लूटा जाना था।इस योजना में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के अशफाक उल्ला खाँ, पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद, मुरारी शर्मा, वरमारी लाल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी,शचीन्द्रनाथ बख्शी,केशव चक्रवर्ती, मन्मथनाथ गुप्त, मुकंदी लाल शामिल थे। घटना को अंजाम देने के लिए हिंदुस्तान रेपुब्ल्लिकन असोसिएशन के 10 क्रांतिकारियों को चुना गया था।
इसका नेतृत्व राम प्रसाद बिस्मिल कर रहे थे, घटना का उद्देश्य ट्रेन को लूटकर सरकारी खजाने को कब्जे में करना था ताकि क्रांतिकारियों के लिए हथियार खरीदे जा सकें।
क्रांतिकारियों के इस दल ने ट्रेन को ककोरी में रोका और घटना को अंजाम दिया, इस घटना को इतिहास में काकोरी कांड के नाम से जाना गया।
इस घटना के बाद अंग्रेजों ने बड़ी संख्या में देश में गिरफ्तारियां कराई, 40 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया और मुक़दमे चलाये गए, सरकार ने सभी अभियुक्तों को एक एक वकील दिया परन्तु राम प्रसाद बिस्मिल ने सरकारी वकील लेने से इंकार कर दिया। राम प्रसाद बिस्मिल ने कोर्ट में अपना पक्ष स्वयं रखा।
10 माह तक लखनऊ की अदालत में यह मुकदमा चलने के बाद फैसला आया, फैसले के अनुसार राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को फंसी की सजा सुनाई गई। शचीन्द्रनाथ बख्शी को कालापानी की सजा और अन्य क्रांतिकारियों को कारावास की सजा सुनाई गई।
हलांकि अंग्रेजी सरकार चंद्रशेखर आजाद को पकड़ने में नाकामयाब रही, क्योंकि चंद्रशेखर आजाद भेस बदलने में माहिर थे। जब अदालत में फैसला सुनाया जा रहा था उस समय चंद्रशेखर आज़ाद भी वहां मौजूद थे परन्तु कोई उन्हें पहचान न सका।
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना :
चंद्रशेखर आज़ाद अंग्रेजी हुकूमत के लिए बहुत बड़ी समस्या बनते जा रहे थे, 1928 आते-आते हिंदुस्तान रिपब्लिकन असोसिएशन पूरी तरह बिखर चुकी थी।1928 में चंद्रशेखर आज़ाद ने सरदार भगत सिंह के साथ मिलकर हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन कर दिया।
1928 में लाला लाजपतराय की लाठियों से पीटकर हत्या कर दी गई, लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला सांडर्स की हत्या के रूप में लेने का निर्णय लिया गया।17 दिसंबर 1928 को भगत सिंह और राजगुरु ने जॉन सांडर्स को गोलियां मारकर हत्या कर दी, इस घटना को अंजाम देने में चंद्रशेखर आजाद ने उनकी सहायता की ।
चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु :
1931 में जब भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव जेल में बंद थे और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी, उनकी सजा कम कराने के सिलसिले में चंद्रशेखर आजाद अलाहबाद गए हुए थे लेकिन 27 फरवरी 1931 को वे अलाहबाद के अल्फ्रेड पार्क में बैठे हुए थे, जिसकी सूचना पुलिस को लग गई ।
थोड़े ही समय में पूरे पार्क को ब्रिटिश पुलिस के सिपाहियों ने चारों और से घेर लिया । आज़ाद के पास उस समय अधिक हथियार मौजूद नहीं थे जिससे कि वे इतने सारे सिपहियों का सामना कर सकें। फिर भी उन्होंने पुलिस का जमकर मुकाबला किया और अंत में जब उनके पास केवल एक गोली बची थी तो उन्होंने खुद को ही गोली मार ली, इस प्रकार चंद्रशेखर आजाद शहादत से पहले भी आज़ाद थे और शहादत के बाद भी आज़ाद रहे ।
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